

रखने से वस्तुएं अपवित्र नहीं होती तथा उसका दुष्प्रभाव खान-पान मे नही पङता है, यहां तक की गर्भवती स्त्रियों के कमर में भी कुश बांधा जाता है जो कि गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा करता है
कर्मकांड में भी इसका प्रयोग होता है श्री दुबे ने कुशआसन के संदर्भ में भी जानकारी देते हुए कहा कि प्राचीन काल में कुश के आशन पर बैठकर आध्यात्मिक चिंतन हमारे ऋषि मुनियों के द्वारा किया जाता था यही नहीं कुश के आसन पर बैठने और शयन करने का भी प्रमाण मिलता है आचार्य दुबे ने आगे कहा कि जमीन में उसके आसन पर बैठने या
शयन करने पर सांप बिच्छू भी दूर भागते हैं कुशोत्पाटनी अमावस्या पर कुश के निकालने और संग्रह के महत्व को आचार्य दुबे ने बताया कि यह 1 वर्ष तक काम करता है और किसी भी कार्य में इसकी पैती अगूठीअंगुली में पहनी जाती है और कुशासन पर बैठकर और कुश जल अछत या तिल हाथ में लेकर सभी तरह के संकल्प और पूजन किया जाता हैं आध्यात्मिक स्तर पर बदलते परिवेश में लोग जहां आधुनिकता की आंधी में अपनी प्राचीन वैदिक परंपराओं के प्रति जानकारी नहीं रखते यही कारण है कि जयमाला से विवाह और वैदिक पद्धति से विवाह में अंतर आ गया है और तमाम तरह की घटनाएं समाज में देखी जाती है श्री दुबे ने कहा कि लोगों को अपने वैदिक और सनातन पर ध्यान देना जरूरी है,